विज्ञापन एक प्रकार का अनलिखा अनुबंध होता है — उत्पादक और उपभोक्ता के बीच । जहां उत्पादक यह वादा करता है कि वो अपने उत्पादन की क्वालिटी बढ़िया बनाए रखेगा और उसके उत्पादन में किसी प्रकार का दोष होने पर उपभोक्ता उसे, उसके पते पर धर सकता है। वहीं उपभोक्ता का कहना होता है कि चलिए हम आपके दावे पर भरोसा किए लेते हैं और आपका उत्पाद ख़रीद कर देखते हैं।
यही कारण है कि आम तौर पर उपभोक्ताओं में विज्ञापित उत्पादनों के प्रति अधिक विश्वास दिखाई देता है। आप खुद कभी ना कभी ऐसे अनुभव से ज़रूर गुज़रे होंगे। मान लीजिए आप टेलिविज़न सेट ख़रीदने जाते हैं। आपको चंद नाम याद आते हैं — सैमसंग, एल जी, सोनी, आदि, लेकिन दुकानदार आपको एक ऐसा सेट दिखाता है, जिसका आपने कभी नाम भी नहीं सुना है। माना उसके दाम आपको याद आने वाले नामों की तुलना में काफ़ी कम हैं, लेकिन आप हिचकिचाते हैं और अंत में निर्णय करते हैं — “नहीं भैया, भले कुछ अधिक दाम देने पड़ें, हम लेंगे वही सेट, जिसे हम जानते हैं”।
एक और मिसाल ले लीजिए, आप अपने लिए जींस ख़रीदना चाहते हैं और आपको एक ऐसी जींस नज़र आती है, जिसका नाम ना तो लीवाएज़ है और ना ही रैंगलर, ना ही डीज़ल है। बल्कि उस का नाम है “टिनपॉट”। हो सकता है उसकी क़ीमत कम हो, यहाँ भी आप झिझकेंगे। उसे नहीं ख़रीदेंगे।
विज्ञापन व्यवसाय में इन अनुबंधनों के मसौदे तैयार करने वाले कापीरायटर कहलाते हैं। यह वे लोग होते हैं जो उत्पादनों में छुपे गुणों को खोज निकालते हैं । इन्हें मसौदा तैयार करने से पहले कई बातों का ध्यान रखना होता है। सबसे पहले वे उन गुणों की खोज करते हैं जो केवल उनके उत्पादन में हों। जैसे लिरिल साबुन में नींबू की सनसनाती ताज़गी का एहसास। जब लिरिल का विज्ञापन अभियान शुरू हुआ था, तब लिरिल नींबू की ताज़गी वाला इकलौता साबुन था। अगर ऐसी स्थिति पैदा हो जाए, जहां अपनेउत्पादन और प्रतिस्पर्धी उत्पादनों में कोई फ़र्क़ ना हो, वहाँ ऐसा गुण खोजने की चेष्टा की जाती है, जो प्रतिस्पर्धी उत्पादन में भी शामिल हो, लेकिन प्रतिस्पर्धी ने उसका दावा अपने विज्ञापन में कभी ना किया हो।
इसका सबसे अच्छा उदारहण लिम्का है । जब हम लिम्का पर काम कर रहे थे, तब यही सोच रहे थे कि लिम्का के बारे में क्या कहा जाए जो दूसरे सॉफ़्ट ड्रिंक्स से अलग हो । सारे प्रतिस्पर्धी उत्पादों का अधय्यन करते हुए, हमने पाया कि जब पानी में कार्बन डाईआक्सायड मिलाई जाती है तब कोई बैकटेरिया जीवित नहीं रहता । पानी, पीने के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित हो जाता है । उसी अधय्यन में हमने ये भी पाया कि कोई सॉफ़्ट ड्रिंक उत्पाद ये दावा नहीं करता है । हमने, लिम्का के लिए “ज़ीरो बैकटेरिया सॉफ़्ट ड्रिंक” का दावा इस्तेमाल करना शुरू किया। ये दावा इतना कामयाब हुआ कि सन 1988 में, भारत अकेला वो देश बना जहां, कोला ड्रिंक की जगह, नींबू स्वाद वाल सॉफ़्ट ड्रिंक, नंबर एक सॉफ़्ट ड्रिंक था ।
अर्थात्, लिम्का के उस दावे को स्वीकार करते हुए, उपभोक्ताओं ने लिम्का को अपनाया। लिम्का, आज भी लोकप्रिय सॉफ़्ट ड्रिंक है, हालाँकि कोका-कोला ने इसे समाप्त करने के लिए अपना ज़ोर लगा कर देख लिया है । वैसे वो एक और लोकप्रिय सॉफ़्ट ड्रिंक, गोल्ड स्पॉट, को मौत के घाट उतारने में सफल हो चुके हैं।
ये अनुबंध टूटते भी जल्दी हैं । इनके टूटने के कई कारण होते हैं। सबसे पहला कारण होता है, अनुबंध में किए गए वादे पर पूरा ना उतरना। अक्सर लोग विज्ञापन बनाते समय यथार्थ की सीमाएँ फलांग जाते हैं और ऐसे दावे कर बैठते हैं, जिनका कसौटी पर खरा उतरना सम्भव नहीं होता है।
मुझे बड़ा आश्चर्य तब होता है जब राजनीतिक पार्टियाँ अपने अनुबंधों में किए गए वादों से बार-बार पलट जाती हैं लेकिन जनता का मोह फिर भी उनसे भंग नहीं होता है। कोई अगर राजनीतिक दलों का यह जादुई फ़ार्मूला हमें बता दे तो हम उस फ़ार्मूले को अन्य उत्पादों पर लागू कर हर विज्ञापन अभियान को सफल बना सकेंगे।