नज़ीर अकबराबादी दुनिया के पहले एडवरटाइजिंग जिंगल राइटर थे।उन्होंने लगभग हर चीज़ पर नज़्म लिखी है। नज़ीर ऐसे जनकवि थे जिन्हें आप कुछ भी दे दीजिये, वो उसको बेचने के लिए आम जन की जुबान में नज़्म लिख डालते थे।रंगकर्मी, शायर और लेखक हबीब तनवीर ने अपने सबसे यादगार कृति ‘आगरा बाज़ार’ में शायर नज़ीर अकबराबादी की नज़्मों को पहली बार १९५४ में नाट्य रूप में पेश किया था।आगरा के बाज़ार में घोर मंदी छाई हुई थी और कुछ भी नहीं बिक रहा था। वहां एक ककड़ी वाले के दिमाग़ में यह बात आयी कि यदि कोई कवि उसकी ककड़ी के गुणों का बखान कविता में कर दे तो बिक्री ज़रूर बढ़ेगी। वो कई शायरों के पास गया पर कोई भी इस काम के लिए राज़ी नहीं हुआ । अंत में वह शायर नज़ीर साहब के पास पहुंचा। उन्होंने फौरन उसका काम कर दिया। वह नज़ीर की लिखी ककड़ी पर कविता गाता हुआ बाजार में आता है और उसके यहां ग्राहकों की भीड़ लग जाती है। फिर तो लड्डूवाला, तरबूज़ वाला, बाला बेचने वाला, आदि सब एक-एक करके वही करने लगते हैं और देखते ही देखते सारा बाज़ार नज़ीर साहब के गीतों से गूंजने लगता है।
बरसों बाद एक आम भारतीय ने अपने लिखे शब्दों से मुझे जनकवि नज़ीर अकबराबादी की याद दिला दी है। जी हाँ, मैं उस लड्डूवाले की बात कर रहा हूँ जिसने ट्विटर पर हुए वायरल एक वीडियो से हमारा दिल जीत लिया है। नज़ीर साहब की मानवीय शायरी के इर्द-गिर्द बुना गया नाटक आगरा बाजार और बुंदेली कलाकार कल्लू केवट द्वारा लड्डू बेचने के लिए लिखा हुआ मजेदार गीत दोनों ही दिल को छू लेते हैं । कल्लू केवट का अंदाज-ए-बयान नज़ीर अकबराबादी साहब से बहुत मिलता-जुलता है। मिलिए कल्लू कलाकार से..
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My life and its stories
… In conversation with Meghana Abhyankar